Saturday 21 November 2015

बंजारा समाज आणि आपला इतिहास

बंजारा गोत्र आणि त्यांची संख्या

चव्हाण- ०६ आणि निसर्गात रुतुची संख्या ०६

पवार- १२ आणि
वर्षाचे महिने १२

राठोड- २७ आणि
वर्षामध्ये २७ नक्षत्र जाधव- ५२ आणि वर्षाचे ५२ आठवडे

आडे- ०७ आणि
वर्षामध्ये फक्त ०७ वार[दिवस]

यावरुन बंजारा समाज किती निसर्गप्रियआहे हे दिसते. या गोत्रांचा अभ्यास होणे गरजेचे आह बंजारा समाज हा विविध जागेवर पसरलेला समाज आहे बंजारा समाजाचा उल्लेख हा अतिप्रचिन असून समाज प्रेरित आहे बंजारा समाजात विविध रूढी,परंपरा ,सन,उत्सव पाहायला मिळतात ह्या समाजात गोर, लमानि,लाभानि,लंबाड़ा बंजारा आदि गोत्र आहेत .हां बंजारा समाज गाय पूजक असल्यामुळे या समाजाला गोर ऎसे म्हटले जाते
बंजारा हा समाज लमानी, लम्बाडि ,बंजारा लमानी,अशा विविध नावानी ओळखल्या जातो

बाकीची माहिती हिंदीमध्ये

भारत की सबसे सभ्य और प्राचीन संस्कृती सिंधु संस्कृती को माना गया है। इसी संस्कृती से जुड़ी हुई गोर- बंजारा संस्कृती है और इस गोर बंजारा समाज का  वास्तव पुरी दुनियाभर में है और उन्हें अलग अलग प्रांत में अलग अलग नाम से जाना जाता है। जैसे महाराष्ट्र मे बंजारा, कर्नाटक में लमाणी, आंध्र में लंबाडा पंजाब में बाजीगर, उत्तर प्रदेश में नायक समाज और बाहरी दुनिया में राणी नाम से जाने जाते है। इस समाज के इ.स.पुर्व काल में बौद्ध और महावीर के भी पहले पीठागौर नाम के गौरधर्म के संस्थापक हुए है। इसके बाद ग्यारवी शताब्दी में दागुरु नामके द्वितीय धर्मगुरु होके गये है। द्वितीय धर्मगुरु ने शिक्षा का महत्व और मंत्र और समाज को दिया। वो मंत्र गोरबोली में शिकच शिकावच शिके राज धडावच, शिके जेरी साजपोळी, घीयानपोळी, इसका मतलब जो समाज शिक्षा प्राप्त करके अपने समाज को शिक्षीत करता है। वहीं समाज राज वैभव प्राप्त कर सकता है इसका उदा. पीठागौरने चंद्रगुप्त मौर्य, हर्षवर्धन जैसे महान विराट राजा को जन्म दिया। उसी तरह दागुरु के विचारों ने आला उदल, राजा गोपीचंद जैसे महान योद्धा वो को निर्मीत किया। इसी 12 वीं शताब्दी से लेकर 17 वी शताब्दी तक गौर बंजारा समान में बड़े बड़े योद्धा होके गये। जैसे महाराणा प्रताप के सेनापती जयमल फंतीहा और राजा रतनसिंग के सर सेनापती और राणी रुपमती के सगे भाई गोर बंजारा गौरा बादल। 16 वी और 17 वी शताब्दी के गौर बंजारा समाज के महान व्यापारी, उत्तर में लकीशों बणजारा और दक्षिण में जंगी, भंगी (भुकीया) और मध्यभारत के भगवानदारस वडतीया थे। ये सभी व्यापारी भारत के बड़े राजा-महाराजाओं को रसद (अनाज) पहुंचाने का काम करते थे। लेकिन आम जनता की फिकर इस गौर बंजारा समाज के संत सेवालाल महाराज को थी, इसलिए उन्होंने आम जनता की सेवा और भलाई के लिए अपने विचारों का संघटन निर्माण किया और उनका नेतृत्व भी किया, उसी महान सतगुरु, समाजसुधारक, क्रांतीकारी, अर्थतज्ञ, आयुर्वेदाचारी और बहुजनों के (कोर-गोर) के धर्मगुरु संत सेवालाल का जन्म 15 फरवरी 1739 को आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले के गुथ्थी तालुकास्थित गोलाल डोडी गांव में हुआ। अभी वो गांव सेवागड के नाम से जाना जाता है। भौगोलीक और ऐतिहासिक जानकारी होने के कारण गोर बंजारा समाज का वास्तव्य प्रदेश की सीमाओं पे ज्यादातर होता था इस स्थिथीयों का फायदा उन्हें व्यापार में मिलता था और संघटन की दृष्टी से भी लाभदायक था इसी बात से उनके दुरदृष्टीका अंदाज होता है। सेवालाल के पिताजी रामजी नायक के सुपुत्र भिमा नायक बहुत बड़े व्यापारी थे। उन्हें लगभग भारतीय सभी भाषाओं का ज्ञान था। उनकी कुल संपत्ती में 4000 से 5000 तक गाय और बैलों का समावेश था। जिसका उपयोग अनाज की यातायात के लिए किया जाता था और वो 52 तांडों के (गांव) के नायक थे। उन्हें नायकडा कहा जाता था (1 गांव का नायक और 52 गांव के नायकडा) एक गांव (तांडे की) की आबादी लगभग 500 के आसपास होती थी। हर तांडे के लिये एक पुरुष और एक स्त्री गोर धर्म प्रचारक के रुप में काम करते थे, उन्हें बावन्न (52) भेरु (पुरुष) और 64 जोगंणी (स्त्री) कहते थे। इन 52 भेरु और 64 जोगणी का एक संघ होता था। और ये मुख्य नायकडा के अंतर्गत कायम करते थे। इसीलिए संत सेवालाल के दादाजी को रामसंघ नायक कहते थे। (52 तांडो का संघप्रमुख) भिमा नायक भी 52 तांडों के संघप्रमुख थे। ऐतिहासिक दस्तावेज से पता चला है की, भिमा नायक ने अंग्रेजों के साथ मुल्य 2 लाख रु. का व्यापारी करार किया था। (अनाज पहुचाने का करार) इस बात से साफ पता चलाता है की, सेवालाल का जन्म वैभव सपन्न घर में हुआ था। इसके अलावा उनके जन्म को लेकर काफी सारी मिथ्या कहानियाँ सुनने में आती है। सेवालाल की माँ का नाम धरमणी था जो कि जयराम बड़तीया (सुवर्ण कप्पा, कर्नाटक) की सुपुत्री थी। भिमा नायक के विवाह के उपरांत लगभग 12 साल तक उन्हें कोई संतान नहीं थी बाद में मरीया माँ के आराधना के बाद संत सेवालाल का जन्म हुआ ऐसी अस्था है। संघ के पारंपारिक निती के नुसार स्वरक्षा और अनाज की रक्षा के लिए यौद्धाओं की निर्मीती की जाती थी। उसी को ध्यान में रखते हुए सेवालाल ने 7 संघटनायकों का एक संघटन बनाया जिसमें खुद सेवालाल, उनके तीन भाई, हापा बदु, पुरा और धर्मी, ढाका, रामसंग साथ भीया थे। इसी संघटन को बाद में 6 संघ नायकों ने अपनाया। इस तरह 13 लोगों का एक महासंघ बना? जो 700 तांडो का नेतृत्व करता था जिसमें मध्यभारत, दक्षिणभारत का समावेश था। मध्यभारत के व्यापारी भगवानदारस वडतीया कुलसंपत्ती 2 लाख बैल) और दक्षिभारत के व्यापारी जंगी, भंगी भुकीया (कुलसंपत्ती 2 लाख बैल) सेवालाल के संघ में समाविष्ट हुए। 17 वी शताब्दी की राजकीय स्थिती के अनुसार हम यह कह सकते है,की, अंग्रेजी सत्ता का प्रभाव और ताकत दिन ब दिन बढ़ता जा रहा था और भारतीय राजाओं की व्यवस्था कमजोर होती जा रही थी। अंग्रेजी हुकूमत का गोर बंजारा व्यापारी पर राजाओं को रसद पहुंचाने के खिलाफ दबाव बढ़ते जा रहा था। और अंग्रेज प्रभावित इलाकों में गोर निकाले जा रहे थे जो की, गोर बंजारा के व्यापारी नियमों के खिलाफ था।इस कर वसुली के खिलाफ प्रस्ताव लेकर सेवालाल अपने सभी संघ नायकों के साथ निजाम से मिलने गये। अंग्रेजी हुकूमत के डर से निजाम ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया इसके मद्देनजर सेवालाल ने निजाम के से मिलने गये। अंग्रेजी हुकूमत के डर से निजाम ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया इसके मद्देनजर सेवालाल ने निजाम के विरुद्ध युद्ध का ऐलान किया। फिर (बंजारा हिल) हैद्राबाद में युद्ध हुआ और परिणामस्वरुप निजाम ने सेवालाल की सभी शर्ते मंजुर की और भारत के अन्य राज्यों के करप्रणाली के लिए दिल्ली के बादशाह गुलाम खान को मिलने की सलाह दी। सेवालाल ने निजाम की सलाह मान ली और निजाम की ओर से दिये हुए सम्मान को स्वीकार किया। सम्मान के तौर पर निजाम ने ताम्रपत्र, तलवार और भेटवस्तू दी। पोहरागढ मंदिर (महाराष्ट्र राज्य) में आज भी ये भेटवस्तुयाँ मौजूद है। दिल्ली के बादशाह गुलाम खान ने इस प्रस्ताव को नामंजुर किया, परिणाम स्वरुप सेवालाल ने युद्ध का ऐलान कीया, गुलाम खान के 25000 सैनिकों का मुकाबला सेवालाल के 900 यौद्धाओं ने किया। गुलाम खान की भारी हार हुई इतिहासकारों ने इस युद्ध का जिक्र कभी नहीं किया। गुलाम खान ने करप्रणाली को माफ करने को मंजुर किया। व्यापार दृष्टीकोन से सेवालाल की ये बहुत बड़ी राजनैतिक जीत थी। इस जीत के चलते सेवालाल का नाम पुरे भारत वर्ष में प्रसिद्ध हुआ। लाहोर के गौरबंजारा (ट्रेडर्स) ने सेवालाल को सम्मानित किया। जयपुर (राजस्थान) के बंजारा व्यापारी और बहुजन लोगों की पुकार पर सेवालाल ने भुमिया नामक दहशतग्रस्त का शिरच्छेद किया और राजस्थानवासियों को भुमिया से मुक्ती दिलाई। आज भी इसी निशानी के तौरपर जयपुर में सवाई मानसिंग हॉस्पीटल में सेवालाल का मंदीर है। दिल्लीस्थित रायसिना हिल लकीशों बंजारा ने सेवालाल के स्वागत में बनाई हुई छत्री नेहरु प्लॅनिटोरियम, नई दिल्ली में मौजूद है। इसी तरह मुंबई के पास सेवानामक गांव में जहापर अभी जवाहरलाल नेहरु पोर्ट ट्रस्ट है वहां पर 17 वीं शताब्दी में सेवालाल पोर्ट हुआ करता था। वैसे ही धरमतर (सेवालाल के सहयोगी) नाम का पोर्ट रायगड जिल्हे में पेण के पास मौजुद है। उसी तरह मुंबई स्थित भाऊचा भी ना होते हुए वो सेवाभाया का धक्का है। इस जगह पर पोर्तुगीज का जहाज फस गया था उसे मोतीयों की माला (इटालियन पर्ल्स) दिया गया, इसी वजह से सेवालाल मोतीवाळो के नाम से भी जाने जाते है। रायगड जिल्हे में पेण के पास गागोदे नामक गांव में सेवालाल का व्यापारी केंद्र था वहां पर आज भी उनके नाम का मंदीर मौजूद है। सेवालाल बहुत बड़े व्यापारी, यौद्धा, संगटक, अर्थतज्ञ तो थे ही लेकिन उसके साथ वे बहुत बड़े समाजसुधारक थे। सेवालाल की ताकत और ग्यान का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि जो भविष्यवाणीयां सेवालालने भारत की सामाजिक और आर्थिक और नैसर्गित स्थिती को लेकर कहीं थी वो सब बाते आज 250 साल बाद सच हो रही है।: कुछ वर्षो में विलुप्त हो जायेगी बंजारा संस्कृति - बंजारा समाज अपनी संस्कृति ,,अपना समाज ,,अपनी बस्ती ,,,भाषा और पहनावे को सुरक्षित संरक्षित करने के लिए शीघ्र ही राष्ट्रव्यापी अभियान चलाएगा ,,,यह निर्णय किनवट में आयोजित बंजारा समाज समाज के गोर सेना के प्रतिनिधियों की एक आपात बैठक में लिया गया ,,,,, गोर सेना के राष्ट्रिय अध्यक्ष संदेश चव्हाण ने बताया के बंजारा समाज राजस्थान की संस्कृति में जन्मा ,,पला ,,बढ़ा है लेकिन राजस्थान की सरकारों की दोहरी नीतियों के चलते बंजारा समाज अपने की बैठक में राजस्थान में लगातार बंजारों पर हो रहे हमलों की घटना पर रोष जताते हुए सरकार के खिलाफ निंदा करते काहा कि ,,,,,,भारत देश के गोर सीकवाडी के विलास ने इस घटना पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा के बंजारा समाज को राष्ट्रिय स्तर पर एक होने की ज़रूरत राष्ट्रिय स्तर पर एक होने की ज़रूरत है उन्होंने कहा के देश में बंजारों की भाषा लुप्त हो रही है ,,संस्कृति ,,पहनावा लुप्त हो रहा है और इस समाज को संरक्षित सुरक्षित करने के लिए सरकारों की कोई योजना नहीं है उन्होंने कहा की जबकि वहां बंजारा समाज निगम की की स्थापना कर बंजारा संस्कृति के संरक्षण का प्रयास किया गया लेकिन भाजपा के लोगों में बंजारों के पक्ष में कोई विज़न नहीं है सिर्फ वोट मांगने के लिए करते है.
सध्याची स्थिति
“बंजारा समाजाचे विद्यार्थी शिक्षण क्षेत्रात होत आहेत अव्वल” - मित्र हो जय सेवालाल👏 एकेकाळी बंजारा तांड्यातील विद्यार्थी 10 वी किंवा 12 वीला फक्त पास झाले तरी खुप खुश असायचे.पण आजकाल अस झाले कि मुलांना खरोखर शिक्षण मिळायला सुरुवात झाली आहे.भलेही शिक्षणाला खुप खर्च वाढलये गरीब विद्यार्थ्यांना चांगल्या शाळेत प्रवेशासाठी झगडावे लागते पण तो विद्यार्थी त्या चांगल्या शाळेत प्रवेश घेउन चांगल्या प्रकारे मार्क मिळऊन पास होतोय हि चांगली गोष्ट आहे.मित्र हो आपल्याला माहित आहे कि सरकारी नौकरी मिळत नाही तर समोरच भवीष्य काय असायला पाहिजे आणि कशा प्रकारे व कोनते शिक्षण शिकायला पाहिजे.ते आपण चांगल्या मार्गदर्शन करनाऱ्या बाधवांशी सल्ला घेऊन समोरील वाटचालीला सुरवात करावी.पालकांना कळकळची विनंती आहे आपण आपल्या मुलानां चांगल्या प्रकारे मार्गदर्शन करनाऱ्या बाधवांशी सल्ला घेऊन समोरील वाटचालीला सुरवात करावी.पालकांना कळकळची विनंती आहे आपण आपल्या मुलानां चांगल्या प्रकारे मार्गदर्श करावे व त्यांना आय टी क्षेत्रात प्रवेश करावे आणि आपल्याला भविष्यात कुठेही नौकरी मिळेल,Polytechnic,ITI,mechanical,b.pharm,d.pharm,mbbs,md,dm,be,ca,mca,bca, अस्या प्रकारचे क्षेत्र निवडावेत व आपल्या पुढिल भविष्यात गरजु विद्यार्थ्यांना मार्गदर्शन करावे.कारण मार्गदर्शक विना भविष्य नाही.आपल्या तांड्यातील सर्व पालक व विद्यार्थ्यांचा मनोबल वाढेल ते क्षेत्र निवडुन शिक्षण घ्यावे.बंजारा समाजाच्या तांड्या मध्ये सर्वात हुशार मुले आहेत पण त्यांना चांगले मार्गदर्शक मिळाले नाही म्हणुन ते आज बेकारीचे दिवस काढत आहे .मित्र हो चांगल्या गोष्टी आपल्याला माहित असेलतर बिंधास्त पणे समोरून जाऊन त्या गरीब विद्यार्थ्यांना सांगावे व त्याना सरळ रस्ता कुठला व अवघड रस्ता कुठला आहे ते सांगावे..कारण 10वी पास होणारा मुलगा खुपच समजदार असेल तस नाही ते पास होण्याच्या धुंदीत स्वताच्या भविष्याची हडबडुन जाऊन क्षेत्र निवडतात.व समोरील भविष्य त्यांचा समोर न जाता कुठेतरी अडकळतो तस न होता.त्यांना न हडबडता क्षेत्र निवडायला �
For more detail click here more information
for like on fb,for comment on fb.for share on fb so please click on jay sewalal
जय सेवालाल

Saturday 7 February 2015

पोहरादेवी आणि संत सेवालाल महाराज यांचे नाते

पोहरादेवी आणि बंजारा समाज यांचे अतूट असे
नाते आहे. बंजारा व्यक्तीच्या जीवनात
पोहरादेवी या गावाला अन्यय साधारण असे महत्व
आहे. सुमारे 250 वर्षापूर्वी संतमुर्ती सेवादास
महाराज हे बंजारा वंशात अवतारी पुरूष होवून गेले.
सेवादास महाराजांना बंजारा समाज कुलदैवत
मानतात. सेवादास महाराज हे बंजारा वंशात
तिसरा अवतार असल्याचे सांगितल्या जाते.
ज्यावेळेस समाजात अन्याय होते. त्यावेळेस
समाजात अवतारी पुरूष जन्म घेत असल्याचे दिसून
येते. तसंच काहीसं बंजारा समाज गावागावी भटकत
असतंाना गाईच्या पाठीवर गहू, ज्वारी , तांदूळ
टाकून व्यापार करत असतांना त्यांच्यावर विविध
स्वरूपाचे अन्याय होत असत. हया अन्यायापासून
मुक्ती देण्यासाठी त्यांना स्वाभीमानाचे जिवन
जगता यावे यादृष्टीने व गोर
बंजारांना वाचविण्यसाठी श्री जगदंबा देवीने
सेवादास महाराजाला बंजारा समाजात अवतार
घेण्यासाठी सांगितले व तद्नुसार संत श्री सेवादास
महाजांचा जन्म कर्नाटक राज्यात
गुत्तीबल्लारी या गावी मार्गशिष महिन्यात शुक्ल
पक्षात शुभनक्ष़त्री 15 फेब्रु. 1739 रोजी झाला.
संत सेवादास महाराज यांच्या जन्माची एक
आख्यायीका आहे. सेवादास महाजाचे वडील
श्री भिमानाईक व आई धर्मळीमाता यांना मुलबाळ
नव्हते. बंजारा समाजात पूर्वी पासूनच
श्री जगदंबा देवीची आराधना करतात.
श्री भिमानाईक व धर्मळीमाता आपल्याला मुल
व्हाव यासाठी जगदंबा देवीच्या नावाने
तपश्चर्येला बसले. सतत तपश्चर्या सुरू होती.
भिमा नाईक अत्यंत कृश झाले होते. सगळीकडे
हळहळ सुरू झाली.
तेव्हा जगदंबा देवी एका बाईच्या साध्या रूपात
प्रसन्न झाली. तुम्हीला पैसा ,संपत्ती सा-
या गोष्टी असतांना तपश्चर्येला का बसले,
तुम्हाला काय कमी आहे. असे साध्या बाईच्या रूपात
असलेल्या जगदंबा देवीने विचारले.
तेव्हा भिमानाईकंानी आम्हाला जगदंबा देवीचा आशिर्वाद
हवा आहे. आम्हाला संतती नाही जो पर्यंत
आम्हाला देवीचे दर्शन होणार नाही, तोपर्यंत
तपश्चर्या सोडणार नाही असे सांगितले.
देवीला श्री भिमानाईक व धर्मळीमाता आपले
सच्चे भक्त असल्याची खात्री पटताच, आपले
प्रत्यक्ष रूप दाखवून
संतती होण्यासाठी आशीर्वाद दिला व तदनुसार
संत श्री सेवादास महाराजांचा जन्म झाला. बदू,
हाप्पा भामा असे तिन भावाचा जन्मा झाला.
काही दिवस जाताच भामा मरण पावला व
पुन्हा जगदंबा देवीच्या आशीर्वादाने
पुरा नावाचा भाउ जन्माास आला.
सेवादास महाराजांचे चमत्कार
जगइंबर देवीच्या आशीर्वादाने सेवादास
महाराजांचा जन्म
झाला असल्या कारणांनी लहानपणापासूनच
जगदंबा देवी महाराजांना प्रसन्न होत्या.
देवीच्या आशीर्वादाने सेवादास महाराजांनी अनेक
चमत्कार दाखविले. भजन करत
असतांना महाराजांच्या भजनात कुठल्याच प्रकारचे
वाद्य नव्हते. दगड गोटे घेवून महाराज वाजवत
होते. दगड गोटयातून वाद्यासारखा आवाज
निघल्याची आख्यायिका प्रसिद्ध आहे.
मातीच्या पोळीला मातीच्या भाजीला प्रत्यक्ष
अन्नाचे रूप दिल्याचे बुजरूक मंडळीकडून ऐकण्यात
येते. गाई गुरे चरत
असतांना गाईच्या रक्षणासाठी स्वताला संकटात
टाकून जगदंबा देवीला यप्रसन्न करून
गाईच्या गुरांचे रक्षण केल्याचे सांगितले जाते. एक
वेळेस जगदंबा देवींच्या सांगण्यावरून सेवादास
महाराजांनी एका राजाच्या शेतात गाई
चरण्यासाठी सोडून दिल्या. राजाला माहित होताच
राजा लढाईसाठी आला. राजा व सेवादास
महाराजात घनघोर लढाई झाली. राजा पराभूत
झाला. सेवादास महाराजाला देवीचा आशीर्वाद
असल्याने आपण पराभूत झालो असे राजाला वाटू
लागले. सेवादास
महाराजाला मारण्यासाठी पेढयामध्ये विष कालवून
राजानी खावू घातले. परंतू देवीने दर्शन देवून
सेवादास महाराजांचे प्राण वाचविले. अशा प्रकारे
सेवादास महाराजांच्या अनेक आख्यायिका प्र​िसध्द
असून महाराजांचा मृत्यू एक चमत्कार असल्याचे
सांगितल्या जाते .
इंद्रदेवाची भेट व सेवादास महाराजांचा अंत
संत श्री सेवादास महाराजांनी माये पासून दूर राहून
ब्रम्हचारी राहण्याचा निश्चय
आपल्या मनाशी केला होता काही झाले तरी लग्न
करणार नाही असे सेवादास महाराजांनी ठरविले
होते. मात्र जगदंबा देवीला सेवादास महाराज
ब्रम्हचारी राहणे मान्य नव्हते. सेवादास
महाराजांनी लग्न करावे असा एकसारखा अट्टहास
देवीनी धरला होता. महाराज प्रत्येक
वेळी लग्नाला नकार देत होते. शेवटी एके दिवशी तू
लग्न का करीत नाही असा प्रखर प्रश्न देवीने
विचारला. तेव्हा आपणास लग्नासाठी जोड नाही.
जगातील संपूर्ण िस्त्रया जगदंबा देवीची रूप
असल्याने लग्न कोणाबरोबर करावे असे सेवादास
बोलले. इंद्रदेवाला व बृहस्पती देवाला भेटून न्याय
मागण्याचे सेवादास महाराजांनी ठरविले. हे ऐकूण
जगदंबा देवी खुश झाली व दोघे जण स्वर्ग लोकात
गेले. स्वर्गलोकांत जाण्यापूर्वी सेवादास
महाराजांनी बधुना बोलावून संागितले.
मी जगदंबा देवीसोबत शरिर येथे ठेवून आत्मरूपाने
स्वर्गात जात आहे. तेव्हा माझ्या शरिराचे रक्षण
करा. माझ्या शरिराला नारींचा स्पर्श होवू देवू
नका. नारिचा स्पर्श झाल्यास मी मरून जाईन असे
सांगून योगक्रियेनी सेवादासांनी प्राण काढला व
जगदंबा देवीसोबत स्वर्गात गेले.
इंद्रदेवाच्या सभागृहात जगदंबा देवीसोबत स्वर्गात
गेले. इंद्रदेवाच्या सभागृहात जगदंबा व सेवादास
महाराज हजर झाले. इंद्रदेवानी स्वर्गात येण्याचे
कारण विचारले. सेवादास
महाराजांनी लग्नासबंधी न्याय मागीतला.
तेव्हा इंद्रदेवानी सेवादास महाराज एक
अवतारी पुरूष असून ब्रम्हचर्य त्यांच्या भाग्यात
आहे,
त्यांना लग्नाचा जोडीदार नसल्याचे सांगितले .
जगदंबा देवीचा साक्षात पाताळ लोकांत
येण्यासाठी निघाले. जगदंबा देवीचा पराभव
झाल्याने मृत्यू लोकात सेवादास
महाराजाला पाठविण पसंत पडले नाही. देवीने दोन
रूपे धारण केली. एक रूप सेवादास महाराज बरोबर
होत तर दुस-या रूपानी सेवादास महाराजांनी आई
धर्माळीमाता त्यंाना सेवादासचा मृत्यू झाल्याचे
कळताच धर्मळी मातेला दुख अनावर झाले.
धर्मळीमाता धावत येवून सेवादासाच्या शरिरावर
पडल्या. सेवादास महाराज आत्मरूपानी स्वर्गात
जात असतांना वापस येईपर्यत स्त्रीचा स्पर्श
शरिराला होवू देवू नका असे
आपल्या भावाला सांगून गेले होते. स्त्रीचा स्पर्श
झाला तर मी वापस येणार नाही. असे सांगितले होते.
धर्मळीमातेचा स्पर्श होताच सेवादास
महाराजांचा मृत्यू शके सतराशे अठ्ठाविस शुध्द
विनायक चतुर्थ पौष मास, 2 जाने 1773 रूई तलाव
ता. दिग्रस जि.यवतमाळ येथे झाला. सेवादास
महाराजांनी आपल्या मृत्यूपूर्वी आपल्या समाधीची जागा पोहरादेवी ता.
मानोरा जि. वाशीम
या गावी मोठया चिंचेच्या झाडाखाली दाखविली होती.
परंतू
रूईच्या पाटलाला समाधीची डोली उचलल्या गेली नाही.
पोहरादेवी येथील पाटलांनी महाराजांची डोली सहज
उचलल्याने पोहरादेवी या गावाला बंजारा समाजात
अनन्य साधारण महत्व प्राप्त होवून ऐतिहा​सिक
रूप प्राप्त झाले.
पोहरादेवी यात्रा सेवादास
महाराजांनी पोहरादेवी या गावी समाधी घेतली असल्याने
या गावाकडे बघण्याचा बंजारा समाजाचा ष्टीकोन
बदलून गेला. पोहरादेवी म्हणजे संत सेवादास
महाराज साक्षात असल्याचे लोकांना वाटू लागले व
याच कारणंानी वर्षाकाठी चार वेळेस
या गावी यात्रा रु लागली. दिवाळीच्या पूव दिवस
माडी पौणमेला , खुद दिवाळीच्या दिनी,
दिवाळीच्या नंतर दिवसांनी व मार्च महिन्यात
रामनवमीला, सेवादास
महाराजांच्या जन्मदिनी यात्रा रु लागली. हळूहळू
यात्रेचे महत्व वाढत गेले. यात्रेच्या माध्यमातून
सेवादास महाराज कितीतरी भाविक क्तांना प्रस
होवू लागले. प्रत्येक यात्रेला क्तगण नवस कबूल
करुन नवसाची परत फड यात्रेला करु लागले. आज
पोहरादेवीची यात्रा भारत भर गाजत आहे.
पोहरादेवी या गावाचे नांव भारताच्या इतिहासात
गाजत आहे. रामनवमीच्या यात्रेला कर्नाटक,
आंध्रप्रदेश व इतर प्रांतातील बंजारा लोक तर
लाखोच्या संख्येने यात्रेला येतात. परंतू इतर
जाती जमातीतील लोक सुध्दा अक्षरश तुटून
पडतांना दिसून येतात.
दिव्यत्वाची जेथे प्रचिती तेथे कर माझे जुळती असे
संताचे वचन आहे. संताचा जन्म मुळातच
विवाच्या कल्याणासाठी मानवजातीच्या उध्दारासाठी असतो धर्म
वेगळा असेन पंथ वेगळा असेन राज्य वेगळे असेन
पण प्रत्येक संताने समाजाला माणुसकी हाच धर्म
शिकवला.
अशाच एका थोर संतोच नाव आहे प.पू. डॉ. रामराव
महाराज पोहरादेवी होय तीच
पोहरादेवी मानोरा तालुक्यातील एक खेडवळ शहर
वाशीम जिल्हयाच्या टोकावर वसलेले. यवतमाळ
जिल्हयाच्या िसमेला लागून असलेले.
एरव्ही ारताच्या ग्रामिण भागाची तेथील
गावाची परिस्थीती जशी आहे तशी
स्तिथी पोहरादेवीची पण पोहरादेवी हे फक्त
खेळवळ गाव नाही तर ते अखिल ारतीय
बंजारा समाजाचे धर्मगुरु डॉ. रामराव महाराज यांचे
रहिवाशी गांव आहे. बंजारा समाजाचे आदर्शगुरु
संत सेवालाल महाराज यांची समाधी येथे आहे तर
जागृत जगदंबेचे येथे व्य व पुरातन मंदिर आहे. प.पू.
संत डॉ. रामराव महाराज यांच्याबाबत अनेक
आख्यायिका त्यांचे क्त नित्याने सांगत असतात.
आंध्रप्रदेशाचे माजी मुख्यमंत्री एन.टी. रामरावा हे
महाराजांचे निस्सीम क्त होते. नांदेडचे स्व.
शंकरराव चव्हाण हे ही होते. राज्याचे
माजी मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण
आजही त्यांना काही विशेष अडचण असल्यास यांचे
मार्गदर्शन घेण्यासाठी येत असतात. अनेक
राजकिय नेत्याप्रमाणे अनेक
नोकरशाहाही महाराजांचे निस्सीम क्त आहे.
महाराजांचा क्त परिवार हा आसेतू हिमालय
पसरला आहे. इकाँच्या पक्षाध्यक्ष
सोनिया गांधी यांनी जेव्हा बेल्लारी मधून निवडणूक
लढवली होती. त्यावेळेस त्यांचा प्रचार्थ संत
रामराव महाराज बेल्लारीला गेले होते.
संत डॉ. रामराव महाराज यांचे राजकिय नेत्यांसोबत
सलोख्याचे सबंध असले तरी त्यांनी उपेक्षीत
बंजारा समाज यासाठी नेहमीच आपली ूमिका ठाम
ठेवली आहे. बंजारा समाजाला संपूर्ण देशात
व्ही.जे. एन.टी. हा प्रवर्ग मिळावा यासाठी प.पू.
संत डॉ. रामराव महाराज यांनी विशेष प्रयत्न केले
आहे व अद्यापही त्याबाबत त्यांचा लढा सुरु आहे.
बंजारा समाज हा उपेक्षीत तर आहेच पण
अशिक्षीतज व रुढीवादी आहे. बंजारा समाजाने
शिकले पाहिजे.
यासाठी समाजाच्या वेगवेगळया कार्यक्रमात
आपल्या प्रवचनात ते नेहमीच सांगतात माता-
पिता आणि गुरुच्या आज्ञेचे पालन करावे.
या संसारात पिुरुषांनी नेकीने राहत घराला मंदिराचे
स्वरुप द्यावे , गोपालन , ूमिसेवा लंबाडीबोल ाषा,
वेशूषा यामध्ये कोणताही बदलाव त्यांनी करु नये ,
बालविवाह व हलाली खाउ नये , खाटकाला गाय
विकू नये , व्यसनापासून नउ दिवस एक वेळेस जेवण
करावे यादरम्यान मासाहार करु नये असेही डॉ. संत
रामराव महाराज नेहमी सांगत असतात. डॉ. संत
रामराव महाराज यांची उपेक्षीत
समाजाप्रती असलेली निष्ठा त्यंानी त्यांच्या विचारात
केलेले परिवर्तन
बंजारा समजाला त्यंानी दिलेली दिशा ,
बंजारा समाजासाठी त्यंानी दिलेला लढा हया सर्व
बाबी ध्यानात घेवून कर्नाटक मधील
गुलबर्गा विद्यापिठाने त्यंाना डि.लिट ने
गौरवान्वीत करुन त्यांच्या कार्याला गौरवान्वीत
केले. कर्नाटकचे महामहिम राज्यपाल
यांनी ही मानद पदवी संत रामराव महाराज
यांना दिली.